जेएनयू: फीस बढ़ोतरी के विरोध में नागरिक मार्च
नई दिल्ली। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में हॉस्टल फीस बढ़ोतरी के विरोध में उतरे छात्रों के समर्थन में वामपंथी संगठनों के बाद शनिवार को आम नागरिक भी सड़कों पर उतर आए। नया हॉस्टल मैन्युअल वापस लेने और देश के हर बच्चे को सस्ती शिक्षा मुहैया करवाने की मांग को लेकर मंडी हाउस से पार्लियामेंट स्ट्रीट तक नागरिक मार्च निकाला गया। मार्च में वामपंथी संगठन, जेएनयू के पूर्व छात्र, जामिया, डीयू व अंबेडकर विवि के पूर्व छात्र, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज मुंबई व एम्स दिल्ली के रेजीडेंट डॉक्टर भी शामिल रहे। भीम आर्मी के चंद्रशेखर, माकपा नेता सीताराम येचूरी, आरजेडी सांसद मनोज झा, उदित रात, योगेंद्र यादव, जेएनयू के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार और उमर खालिद ने जेएनयू के बहाने मोदी सरकार पर जमकर निशाना साधा। विरोध मार्च शाम करीब साढ़े चार बजे तक चला, हालांकि इस दौरान शांति रही।
जेएनयू छात्रों के उग्र प्रदर्शन को देखते हुए मंडी हाउस के आसपास के इलाके को सुबह पौने 11 बजे तक छावनी मेें तब्दील कर दिया गया था। मंडी हाउस से बाराखंबा की ओर जाने वाली सड़क पर यातायात रोक दिया गया। करीब सवा 11 बजे प्रदर्शनकारी जुटने शुरू हुए और 12 बजे मंडी हाउस से पार्लियामेंट स्ट्रीट पुलिस स्टेशन की ओर रवाना हुए। करीब तीन किलोमीटर के रास्ते में 'सस्ती शिक्षा हमारा अधिकार, सभी को शिक्षा मुहैया करवाना सरकार की जिम्मेदारी, लोकतंत्र में सस्ती व सुगम शिक्षा हमारा अधिकार... जैसे नारे लिखी तख्तियों लाल व नीले झंडों के साथ छात्र, डॉक्टर, इंजीनियर, अधिकारी व बुद्धिजीवियों ने मार्च निकला। दोपहर करीब डेढ़ बजे प्रदर्शनकारी पार्लियामेंट स्ट्रीट पुलिस स्टेशन के सामने पहुंचे। यहां पर मार्च में शामिल नेताओं, ने छात्रों समेत आम नागरिकों को संबोधित किया।
छात्रों पर न करें लाठीचार्ज....कल आपके बच्चे भी यहीं पढ़ेंगे
माकपा नेता सीताराम येचूरी, भीमआर्मी चंद्रशेखर, उदित राज व सांसद मनोज झा ने दिल्ली पुलिस व अर्द्धसैनिक बलों को संबोधित करते कहा कि जेएनयू छात्रों पर लाठीचार्ज न करें। ये छात्र अपने साथ आने वाली पीढ़ियों की दिक्कतें दूर करने की आवाज उठा रहे हैं। सरकार आप लोगों को इतना वेतन नहीं देती है कि रिलायंस की जियो यूनिवर्सिटी में अपने बच्चों को दाखिला दिला पाओ। आपके बच्चे भी जेएनयू जैसे संस्थानों में पढ़ने आएंगे। इसलिए अगली बार सरकार के दबाव में आलाधिकारी प्रदर्शन करते निहत्थे छात्रों पर लाठीचार्ज का आदेश दें तो आप इनका साथ देना।
27 को राष्ट्रीय विरोध प्रदर्शन दिवस का आह्वान
जेएनयू छात्रसंघ ने देशभर के सभी उच्च शिक्षण संस्थानों को 27 नवंबर को राष्ट्रीय विरोध प्रदर्शन दिवस मनाने की अपील की है। छात्रों से अपील की गई है कि वे इस दिन देश के हर बच्चे को सस्ती व सुलभ शिक्षा मुहैया करवाने की मांग पर कक्षाओं का बहिष्कार करें। सस्ती व सुलभ शिक्षा मुहैया करवाना सरकार की जिम्मेदारी है और लोकतंत्र में उनका अधिकार। इस दौरान नई शिक्षा नीति, आर्थिक स्वायत्तता, हीफा जैसी योजनाओं पर भी विरोध दर्ज करवाया जाएगा।
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लापता नजीब को तलाशने की भी मांग
नागरिक मार्च में फीस बढ़ोतरी के विरोध के बीच जेएनयू कैंपस से लापता छात्र नजीब अहमद को तलाशने की मांग फिर उठी। जेएनयू छात्र एक हाथ में हॉस्टल फीस बढ़ोतरी का फैसला वापस लेने और दूसरे हाथ में नजीब अहमद को तलाशने को दर्शाती तख्ती लेकर निकले। मार्च में नजीब के परिवार के सदस्य भी शामिल रहे। इससे पहले नजीब अहमद की मां फातिमा नफीस ने जेएनयू छात्रों के समर्थन में देशभर के आम लोगों को जुड़ने की अपील की थी। उन्होंने कहा था कि अब इन छात्रों का साथ नहीं दिया तो गरीब तबके के छात्रों के बच्चे कभी उच्च शिक्षा हासिल नहीं कर पाएंगे।
प्रदर्शनकारियों से अधिक सुरक्षा बल
प्रदर्शनकारियों को संभालने के लिए दिल्ली पुलिस ने पूरे इलाके को छावनी में तब्दील किया था। दिल्ली पुलिस के आलाधिकारी (संयुक्त आयुक्त व डीसीपी) स्वयं प्रदर्शन के साथ पैदल चलते रहे। प्रदर्शन में शामिल छात्रों व आम नागरिकों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सुरक्षा बलों ने उनके चारों ओर घेरा बना रखा था, ताकि कोई अराजक तत्व माहौल खराब न कर सकें। इस दौरान तबीयत खराब होने पर पुलिस ने कई छात्रों को गाड़ी के माध्यम से प्रदर्शन स्थल तक भी पहुंचाया।
निर्मला सीतारमण, बाबा रामदेव पर निशाना
वक्ताओं ने जेएनयू की पूर्व छात्रा व केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण पर निशाना साधते हुए कहा कि ऐसे भी पूर्व छात्राएं हैं, जिस विश्वविद्यालय की पढ़ाई के चलते वे देश की वित्तमंत्री बनीं पर उन्हें ही छात्रों की फीस बढ़ोतरी का दर्द नहीं दिख रहा। वे चाहती तो किसी योजना के माध्यम से विश्वविद्यालय को फंड देतीं। वहीं, बाबा रामदेव पर निशाना साधते हुए कहा कि वे भी अब जय भीम व जय अंबेडकर बोलना सीख गए हैं।
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छात्रों की आवाज को न समझें शोर, निजाम बदल गए
जेएनयू के छात्रों की फीस बढ़ोतरी पर उठी अवाज कोई शोर नहीं है। गरीब परिवारों के इन छात्रों की दिक्कत न समझ पाए हैं तो यह समझ लें.......यहां बड़े-बड़े निजाम बदल गए हैं। छात्राओं को जिन पुलिसकर्मियों ने पीटा है, वे समझ लें कि बेटियां शान होती हैं। नहीं समझ पाएं तो फिर हम गांव और देहात के लोग शहरी भाषा भूल अपने हल, बैल, गाय, बकरी के साथ पार्लियामेंट स्ट्रीट की ओर कूच करेंगे तो यह सुरक्षा को घेरा कहीं नहीं टिक पाएगा।
-चंद्रश्ेाखर, भीमआर्मी
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सरकार नहीं चाहती गरीब का बच्चा उच्च शिक्षा हासिल करें
जेएनयू में हॉस्टल फीस बढ़ोतरी सोची-समझी साजिश है। सरकार नहीं चाहती है कि गरीब का बच्चा दिल्ली आकर उच्च शिक्षा हासिल कर सके। जेएनयू कैंपस का एक पुराना नारा था कि सबको शिक्षा, सबको काम नहीं तो होगी नींद हराम..। सरकार बेशक लाठियों के दम पर आवाज को दबाना चाहे पर आगे बढ़ना। छात्रों के हौसले को सलाम।
-सीताराम येचूरी, माकपा नेता।
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मोदी सरकार जेएनयू की आवाज नहीं दबा सकती
मोदी सरकार हमेशा जेएनयू को बदनाम करके उसकी आवाज को दबाने में लगी रहती है। सरकार भूल गई कि यह जनता है, इसी ने चुनकर संसद तक भेजा है। वोट देने वाले परिवारों के छात्र पढ़ेंगे नहीं तो दुनिया के टॉप सौ में भारतीय संस्थान पहुंचेंगे कैसे।
- कन्हैया कुमार, छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष
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जेएनयू हॉस्टल फीस बढ़ोतरी पूरी तरह से गलत है। इसीलिए हम छात्रों के समर्थन में उतरे हैं। जेएनयू निर्माण का मकसद दूर-दराज व पिछड़े इलाकों के छात्रों को दिल्ली में अच्छी उच्च शिक्षा दिलाना था, ताकि वे देश के विकास में सहयोग कर सकें। ऐसे में फीस बढ़ोतरी से गरीब परिवारों के छात्र उच्च शिक्षा से दूर हो जाएंगे, इसी बात का हम विरोध करते हैं।
-मदन राय, पूर्व छात्र,1974 बैच,जेएनयू
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मोदी सरकार बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा देती है। जेएनयू हॉस्टल फीस बढ़ोतरी इस नारे को पूरी तरह खत्म कर देगी। गरीब परिवार अपने बेटे के लिए तो तीन सौ रुपये खर्च कर देगा पर बेटी के लिए नहीं। इस फैसले से हजारों बेटियों का जेएनयू में उच्च शिक्षा की पढ़ाई करने का सपना टूट जाएगा।
-रितंभरा शास्त्री, पूर्व छात्रा 1981 बैच
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फीस बढ़ाना एक सामान्य प्रक्रिया होती है। हम फीस बढ़ाने का विरोध नहीं कर रहे हैं, लेकिन एक साथ 999 फीसदी तक फीसदी बढ़ाना गलत है। इसीलिए हम अपने पूर्व संस्थान के छात्रों के सपनों को बचाने के लिए सड़कों पर हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन को आंशिक फीस बढ़ानी चाहिए थी